Friday, September 5, 2014

कैसा है यह जाल पसारा

फरवरी २००७ 
ज्ञान और भक्ति साथ-साथ चलते हैं. जब हमें आत्मा का ज्ञान होता है तो हृदय प्रेम से भर जाता है. आनन्द को कोई आनन्द से ही तो पूज सकता है. यह सारी प्रकृति उसी का रूप है जो हमें दिन-रात आनन्दित करने की चेष्टा करता है. वह स्वयं आनन्द स्वरूप है और आनन्द ही बिखेर रहा है. लेकिन हम अपने बनाये जाल में इतने मगन हैं कि उसकी ओर दृष्टि ही नहीं करते, वह हमें दुःख भी इसलिए देता है कि हम उससे उकता कर उसे देखें पर हमारी मूढ़ता की कोई सीमा नहीं है हम दुःख में ही सुकून ढूँढ़ लेते हैं. एक अजीब सी बेहोशी में सारा जगत डूबा हुआ है, जागकर देखता भी नहीं कि असल समस्या कहाँ हैं ?


4 comments:

  1. हम दु:ख में ही सुकून ढूंढ लेते हैं ........ बिल्‍कुल सच

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  2. " प्रेम न खेती ऊपजे प्रेम न हाट बिकाय ।
    राजा - परजा जेहि रुचै सीस देइ लै जाय ॥"
    कबीर

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  3. सदा जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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  4. सुन्दर। भक्ति से एक कदम आगे की अवस्था है ज्ञान जब ज्ञान हो जाता है भक्ति और प्रगाढ़ हो जाती है।

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