मार्च २००७
ईश्वर कृपा रूप है, उसकी कृपा हर पल, हर स्थान पर बरस रही है. हम
कृपा के सागर में ही रह रहे हैं पर हम इसे महसूस नहीं कर पाते. ज्ञान, कर्म और
उपासना के द्वारा हम इसे महसूस करने के योग्य बन सकते हैं. ज्ञान का अर्थ है स्वयं
के वास्तविक रूप का ज्ञान अर्थात आत्मा का ज्ञान, कर्म का अर्थ है निष्काम कर्म
अर्थात जो सहज रूप से होते हैं न कि किसी कामना वश, उपासना का अर्थ है भक्ति, जो
हमें ईश्वर के निकटतर लेती जाये. मात्र शाब्दिक ज्ञान हमें कहीं नहीं ले जायेगा
वरण अनुभव करना होगा. अभी तो हम असजग हैं, स्वप्न में हैं, केवल रात्रि को ही
स्वप्न नहीं देखते, दिन में भी भीतर जो अंतर धारा चल रही है वह भी तो स्वप्न ही है. बीच में कभी क्षण भर के लिए स्वप्न टूटता
है. काश ! यह हमारे जीवन की रात्रि का अंतिम स्वप्न हो. सन्त हमें जगाने आते हैं,
वह जो स्वयं जगा है वही तो दूसरों को जगा सकता है.
आपके डायरी के पन्ने अनमोल ज्ञान से भरें हैं :)
ReplyDeleteस्वागत व आभार रोहितास जी
ReplyDelete