मार्च २००७
प्रेम का मार्ग अति कठिन है, प्रेम किसी क्रिया या पदार्थ पर
निर्भर नहीं करता. मन रूपी दर्पण पर जमी धूल सामने हो तो आत्मा रूपी प्रेम नहीं दिखता
जब क्रिया या पदार्थ के प्रति आसक्ति के प्रति सजग होकर कोई उसे त्याग देता है तो
उसमें एक नई जागृति उत्पन्न होती है और वह अपने मन पर लगी धूल साफ करने लगता है.
यह जागृति ही प्रेम को जन्म देती है. जो जागता है उसका ध्यान परमात्मा करता है, जागरण
का अर्थ है आत्मा में स्थित हो जाना और आत्मा परमात्मा का अंश है. जागना यानि
सजगता हमें पल-पल मुक्त रखती है. यही जीवन मुक्ति है. भीतर से ऐसी मुक्तता का
अनुभव करना हमें प्रेम सिखाता है. वही सहजता है, वही योगी का लक्ष्य है, ध्यानी का
और ज्ञानी का लक्ष्य है. हर जाता हुआ क्षण हमें विश्रांति का अनुभव दे और हर आता
हुआ शक्ति का तो हम कार्य करते हुए भी आनन्द का अनुभव करते हैं तथा कुछ न करते हुए
भी तृप्ति का. सजगता आती है सजग रहने से जैसे तैरना आता है तैरने से, इसमें किसी
व्यक्ति, वस्तु, क्रिया पर हमें निर्भर नहीं रहना है. सद्गुरु ने यह मार्ग दिया
है, अब चलना तो स्वयं ही होगा. यह तलवार की धार पर चलने जैसा है पर इस पर चलने का
बल परमात्मा हमें देता है, उसकी कृपा तो बरस रही है अनवरत !
ReplyDeleteअति सूधौ स्नेह का मार्ग है।