Monday, September 8, 2014

भीतर एक अछूता देश

मार्च २००७ 
क्रिया और पदार्थ दोनों से परे है आत्मा, हम कितना भी जप, तप, ध्यान आदि करें, सब मन व बुद्धि के स्तर तक ही रहेगा तथा पदार्थ तो वहाँ तक भी नहीं ले जाते जहाँ से मन व बुद्धि लौट-लौट आते हैं. वह अछूता प्रदेश है. वहाँ कुछ भी नहीं है, न कोई करने वाला न क्रिया, न दृश्य न द्रष्टा, केवल शुद्ध चेतना ही वहाँ है. वही शुद्ध चेतना, परमात्मा या आत्मा कहलाती है. वही चेतना जब संसार की ओर मुड़ती है तो जीवात्मा कहलाती है.


3 comments:

  1. सुन्दर अतिसुन्दर विचार सरणी। सत्यम ज्ञानम् अनन्तम् ब्राह्मण।

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  2. शिवोहम् शिवोहम् अमर आत्मा सच्चिदानन्द मैं हूँ ।
    सुन्दर बोधगम्य रचना । मज़ा आ गया ।

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  3. वीरू भाई व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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