मार्च २००७
क्रिया और पदार्थ दोनों से परे है आत्मा, हम कितना भी जप, तप,
ध्यान आदि करें, सब मन व बुद्धि के स्तर तक ही रहेगा तथा पदार्थ तो वहाँ तक भी
नहीं ले जाते जहाँ से मन व बुद्धि लौट-लौट आते हैं. वह अछूता प्रदेश है. वहाँ कुछ
भी नहीं है, न कोई करने वाला न क्रिया, न दृश्य न द्रष्टा, केवल शुद्ध चेतना ही
वहाँ है. वही शुद्ध चेतना, परमात्मा या आत्मा कहलाती है. वही चेतना जब संसार की ओर
मुड़ती है तो जीवात्मा कहलाती है.
सुन्दर अतिसुन्दर विचार सरणी। सत्यम ज्ञानम् अनन्तम् ब्राह्मण।
ReplyDeleteशिवोहम् शिवोहम् अमर आत्मा सच्चिदानन्द मैं हूँ ।
ReplyDeleteसुन्दर बोधगम्य रचना । मज़ा आ गया ।
वीरू भाई व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !
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