जुलाई २००८
ईश्वर हमारे
भीतर है, जब हम तय करें उससे मिल सकते हैं, लेकिन जब तक हम अहंकार से ग्रस्त हैं
तब तक हम उसे पा नहीं सकते. मन से मुक्त होना असम्भव है ऐसा जब तक लगता है इसका
अर्थ है मन में इच्छाएं अतृप्त हैं. जब तक इनको स्वीकार करके उन्हें असार नहीं जान
लेते, तब तक लौटना नहीं होता. जीवन में सब जानने जैसा है. जीवन से भागना नहीं है,
जीवन के सारे अनुभवों से गुजर जाना ही मुक्ति का उपाय है. विचार की सीढ़ियों से
चढ़कर ही निर्विचार तक पहुँचा जा सकता है. संसार एक चुनौती है, एक आयोजन है
परमात्मा तक पहुंचने का. जीवन की पाठशाला में कक्षा दर कक्षा चढ़ कर ही हमें वे
उत्तर प्राप्त होते हैं जो समाधान बनते हैं. जीवन हमें तीन सीढ़ियाँ देता है, इनसे
चढ़कर ही चौथी अवस्था तक पहुँचा जा सकता है. जीवन के सभी रूप शुभ है. उन्हें सहज
स्वीकारना होगा. जीवन में क्षुद्रताओं को उच्चताओं से लड़ाने जायेंगे तो उच्चता ही
हारेगी.
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा अर्थात् वह हमारे भीतर भी है ।
ReplyDeleteबोधगम्य - रचना ।
जीवन के सभी रूप शुभ है. उन्हें सहज स्वीकारना होगा.
ReplyDeleteहरेकृष्ण जी, शकुंतला जी व राहुल जी, स्वागत व आभार
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