मार्च २००८
परमात्मा से
प्रेम हो जाये तो यह जगत होते हुए भी नहीं दिखता, वह प्रेम इतना प्रबल होता है कि
सब कुछ अपने साथ बहा ले जाता है. शेष रह जाता है निपट मौन, एक शून्य, एक खालीपन
लेकिन उस मौन में भी एक नये तरह का संगीत गूँजता है. वह खालीपन भी भरा हुआ है, कुछ
खास ही तत्व से. वह तत्व जो अविनाशी है, कल्याणकारी है, अजन्मा है, अनंत है, हमारी
आत्मा से परे है.
शेष रह जाता है निपट मौन, एक शून्य, एक खालीपन लेकिन उस मौन में भी एक नये तरह का संगीत गूँजता है.
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