फरवरी २००८
प्रतिकूल संयोग
हमारे लिए विटामिन है और अनुकूल संयोग हमारे लिए भोजन है. हम अपने जीवन में जो कुछ
भी अच्छा-बुरा पाते हैं, हमारे कर्मों का फल है यदि ऐसी हमारी दृढ़ मान्यता है तो
दुखों के आने पर हमें प्रसन्न होना चाहिए कि एक बुरा कर्म कट रहा है. भीतर समता
बनाये हुए जब हम परिस्थिति को झेल जाते हैं तो भविष्य के लिए कोई कर्म बंध नहीं
बांधते. इसी प्रकार सुख के मिलने पर किसी पुण्य कर्म का उदय हुआ है यह मानकर समता
भाव बनाये रखना है, अन्यथा वह सुख भी बंधन बन जायेगा.
दुःख सुख में समत्व भाव ही सफल जीवन का रहस्य है...बहुत सटीक चिंतन...
ReplyDeleteगहन भाव जीवन की सार्थकता समझाते हुए !!बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteस्वागत व आभार, कैलाश जी व अनुपमा जी !
ReplyDeleteभीतर समता बनाये हुए जब हम परिस्थिति को झेल जाते हैं तो भविष्य के लिए कोई कर्म बंध नहीं बांधते.
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