Friday, March 6, 2015

चल चला चल ...ओ राही चल चला चल

मार्च २००८ 
शक्ति यदि शांत चेतना से उत्पन्न हुई हो तभी कल्याणकारी होती है. ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति था इच्छा शक्ति, ये तीनों शक्तियाँ हमारे भीतर हैं जीवन तभी अर्थमय होगा जब इन शक्तियों का सदुपयोग हम कर सकें, अन्यथा ये शक्तियाँ विनाशकारी भी हो सकती हैं. अपने भीतर की शांति, सौम्यता, सहजता, सरलता तथा प्रेम का विनाश तथा अपने बाहर की समरसता का विनाश. हर पल सजग रहने की आवश्यकता है, जीवन का कीमती समय पल-पल कर यूँ ही बीत रहा है. हाथ में कुछ भी नहीं आ रहा. कभी लगता है कि जिस परम खजाने की तलाश थी वह यहीं तो है. पूर्ण तृप्ति का अहसास होता है, फिर जरा सा चूके नहीं कि वह तृप्ति कहीं खो जाती है. फिर तलाश....सम्भवतः यही साधना की नियति है. अनवरत खोज..मंजिल सदा दूर चली जाती है. यदि खोज समाप्त हो जाये तो जीवन रुक जाता है. जीवन तो सदा ही चलते रहने का नाम है.


3 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने । " चरैवेति - चरैवेति ।"

    ReplyDelete
  2. सस्वागत व आभार शकुंतला जी...

    ReplyDelete
  3. जीवन तो सदा ही चलते रहने का नाम है.

    ReplyDelete