जुलाई २००८
जब बुद्ध
को ज्ञान हुआ तो वृक्षों में असमय फूल आ गये. हमें भी अपने भीतर इतनी संवेदनशीलता
जगानी है कि फूलों की गुफ्तगू सुन सकें. प्रकृति के धीमे-धीमे स्वर हमें सुनाई
दें. जब कोई भीतर के छंद को पा लेता है तो चारों ओर से परमात्मा उसे सहारा देने के
लिए आ जाता है. वह तो हर पल साथ है ही, हम
ही बचते फिरते हैं, छिटके रहते हैं. जब हम प्रार्थना करना सीखते हैं, झुकना सीखते
हैं, अहंकार को छोड़ देते हैं तब भीतर यह भाव पैदा होता है कि जो है वही होना चाहिए
था. अहंकार हारता है पर लड़ने की प्रेरणा दिए जाता है. सम्मान की आकांक्षा ही अपमान
को जन्म देती है. यदि हम कुछ होने की, कुछ पाने की जिद छोड़ दें तो जो है, जैसा है,
वही प्रसाद सा लगने लगता है !
बिलकुल ठीक,
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
दर्शन जी व सतीश जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसही कहा आपने ...
ReplyDeleteजब कोई भीतर के छंद को पा लेता है तो चारों ओर से परमात्मा उसे सहारा देने के लिए आ जाता है. वह तो हर पल साथ है ही, हम ही बचते फिरते हैं, छिटके रहते हैं.
बिल्कुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteसराहनीय ।धन्यवाद।