फरवरी २००८
भक्त स्थूल
जगत को तो आनंदित करता ही है, सूक्ष्म जगत को भी प्रभावित करता है. उसके आस-पास
रहने वाले लोग भी धीरे-धीरे इसी रंग में रंग जाते हैं. आखिर कोई कब तक परमात्मा से
दूर रह सकता है. हम अपना जीवन तभी तो प्रेममय तथा शांतिमय बना सकते हैं जब विकारों
से दूर हों, और विकारों से दूर होने की शक्ति परमात्मा से मिलती है, जब उसके प्रेम
का अहसास होता है. यह जगत अनित्य है इसे हम अपने अनुभव से प्रतिपल जानते हैं. यह
स्मरण रहे तो आसक्ति नहीं होती. इस जगत में हमारी कोई शरणस्थली नहीं है. जब तक
पुण्य हैं तभी तक शरण है, वरना अशरण ही है. दस की गिनती में हम एक को न लगायें तो
शून्य ही शेष रहता है, एक परमात्मा न हो तो संसार शून्य है. उसी एक की शरण में
जाना है.
हम अपना जीवन तभी तो प्रेममय तथा शांतिमय बना सकते हैं जब विकारों से दूर हों, और विकारों से दूर होने की शक्ति परमात्मा से मिलती है, जब उसके प्रेम का अहसास होता है. यह जगत अनित्य है इसे हम अपने अनुभव से प्रतिपल जानते हैं...............
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी...
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