जुलाई २००८
चेतना पूरे
शरीर में जग जाये तो वह ज्ञान है और वह ज्ञान फिर झुक जाये वही भक्ति है. भक्ति
समय सापेक्ष नहीं है, वह जिम्मेदारी लेना सिखाती है. भक्त पहले भगवान को भीतर
देखता है, फिर सारा संसार प्रभुमय देखता है. भक्ति चेतना की पूर्णता है, जहाँ भी
हम झुके वहीं भक्ति का आरम्भ होता है. ईश्वर ने हमने यह मानव तन दिया है, सद्गुरु
इस में सत्यता का बोध कराता है. जो इन्द्रियों का रस, विचार का रस, भावना का रस,
आनंद का रस इन तनों से लेता रहता है तो ऐसे ही तन मिलते है, पर इनसे पार जब शुद्द
सुख व शुद्ध रस मिलने लगे तब प्रेमाभक्ति का रस मिलता है.
No comments:
Post a Comment