मई २००८
बाहर हमें
जो भी मिलता है वही हमारा प्राप्य है पर भीतर का क्षेत्र हमारा अपना है, जहाँ हम
जो चाहे पा सकते हैं. वहाँ आत्मा का साम्राज्य है, वह कल्पतरु है, जो माँगो उससे
मिलता है. वहाँ मौन है, शांति है, आनंद है, प्रेम है, सुख है, ज्ञान है और शक्ति
है. भीतर की दुनिया अनोखी है, जहाँ विश्रांति है, जहाँ मन ठहर जाता है, बुद्धि
शांत हो जाती है, जहाँ चित्त डूब जाता है. जहाँ कोई उद्वेग नहीं है, कोई लहर नहीं
है, जहाँ अनोखा संगीत गूँजता है, जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है. जहाँ जाकर लौटने की
इच्छा नहीं होती. वह हमारा अंतरस्थल ही हमारा आश्रय स्थल है. वही हमारा घर है.
बाहर तो जैसे कुछ देर के लिए हम घूमने जाएँ या बाजार जाएँ या किसी से मिलने जाएँ
अथवा तो दूसरे शहर या दूसरे देश जाएँ !
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