३ सितम्बर २०१७
प्रकृति पल-पल बदल रही है, चाहे पेड़-पौधों की हो, पशुओं की हो या मानवों की. समय के
साथ-साथ उनमें परिवर्तन आ रहा है. मानव को छोड़कर सब उसे सहज ही स्वीकारते हैं,
वृक्ष बूढ़े होते हैं और देह त्याग देते हैं. मानव अजर-अमर रहना चाहता है, जरा को
जितना हो सके दूर रखना चाहता है और मृत्यु से सदा ही भयभीत रहता है. यहाँ तक कि
वृद्ध हो जाने पर भी उसे ऐसा नहीं लगता कि कोई भी क्षण जीवन का अंतिम क्षण हो सकता
है. यदि बचपन से ही जीवन और मृत्यु दोनों की बात घर-परिवार, विद्यालय में की जाये तो
कितने तरह के दुखों से बचा जा सकता है. तब न तो अधिक संग्रह करने की प्रवृत्ति का
जन्म होगा और न ही मन में भय होगा. जीवन को सम्मान मिलेगा यदि यह सदा स्मरण रहे कि
यह कभी भी हाथ से जा सकता है. मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं रहेगा जब यह स्मरण
रहेगा कि एक दिन सब कुछ छूटने ही वाला है.
नवीन विचार ... जिससे भय लगे उसको सबसे ज्यादा चर्चचा में लाओ ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
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