२२ सितम्बर २०१७
देह प्रकृति का भाग है, चेतना
पुरुष का. मानव इन दोनों का सम्मिलित रूप है. प्रकृति और पुरुष दोनों अनादि हैं,
एक दूसरे के पूरक हैं. देह के बिना आत्मा कुछ नहीं कर सकती और आत्मा के बिना देह
शव है. इन दोनों के भिन्न-भिन्न स्वरूप को जानना ही प्रत्येक साधना का लक्ष्य है. इसीलिए
भारतीय संस्कृति में दोनों की उपासना की जाती है. प्रकृति का उपयोग करके आत्मा का
अपने चैतन्य स्वरूप का अनुभव कर लेना ही मानव जीवन की सर्वोत्तम उपलब्ध मानी गयी
है. प्रकृति को माँ कहकर उसकी विभिन्न शक्तियों के अनुसार अनेक रूपों की कल्पना की
गयी है. दुर्गा की स्तुति करके जब साधक अपने भीतर सात्विक शक्तियों को जगाता है, उसे
स्वयं के पार उस चैतन्य का अनुभव होता है. जिसका अनुभव करने के बाद उसे परम संतोष
का अनुभव होता है.
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