२५ सितम्बर २०१७
कर्ताभाव से मुक्त होना ही साधना
का लक्ष्य है. जैसे सृष्टि में परमात्मा सब कुछ करता हुआ भी कुछ नहीं करता, उसकी
उपस्थिति मात्र से प्रकृति में सब कार्य हो रहे हैं. प्रातःकाल सूर्योदय के होने
से ही वातावरण में हलचल होने लगती है, पंछी जाग जाते हैं, वृक्षों पर फूल खिलने
लगते हैं. उसी तरह देह में आत्मा की उपस्थिति मात्र से अनेक क्रियाएं हो रही हैं.
जिस समय जो भी कर्म साधक के सम्मुख आता है, उसको सहजता से कर देने से न तो उसे
कर्म का बंधन होता है न ही विशेष श्रम का आभास होता है. यदि उसी कर्म को करते समय
कोई अपने में विशेष भाव मानकर अहंकार जगाये अथवा ठीक से न कर पाने पर दुःख का
अनुभव करे, तो कर्म उसे बाँध लेता है. भविष्य में फिर उसी कर्म को करते समय उसे
इन्हीं भावों का अनुभव होगा.
No comments:
Post a Comment