२१ सितम्बर २०१७
शरद ऋतु के आगमन के साथ ही सारा
भारत जैसे भक्ति के रस में डूब जाता है. पहले नवरात्रि के नौ दिन जिनमें देवी के
नौ रूपों की आराधना की जाती है, पश्चात दशहरा और उसके बीस दिनों बाद दीपों का पर्व
दीवाली. वैदिक काल से ये उत्सव हमारे मन-प्राणों को झंकृत करते आ रहे हैं तथा भारत को एक सूत्र में बाँध रहे हैं. पुराणों के
अनुसार देवासुर-संग्राम में जब देवताओं द्वारा असुरों का नाश सम्भव नहीं हुआ तब उन्होंने
शक्ति की देवी की आराधना की, सब देवताओं ने उसे अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये. सद्गुणों
व दुर्गुणों के रूप में देव तथा असुर हमारे भीतर ही वास करते हैं. इसका अर्थ है हमारे
भीतर की दैवीय शक्तियाँ जब संयुक्त हो जाती हैं तब ही वे विकार रूपी असुरों का नाश
कर सकती हैं. सात्विक दिनचर्या अपनाकर इस आत्मशक्ति को बढ़ाने का उत्सव है नवरात्रि.
नौ दिनों की शक्ति की उपासना के बाद जब साधक का मन शुद्ध हो जाता है. वह आत्मबल से
युक्त हो जीवन के प्रति नवीन उत्साह से भर जाता है.
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