२८ सितम्बर २०१७
जब हम कहते हैं ‘घट घट में
राम’, तब हम सभी के मध्य अनुस्यूत एक समान धारा को देखने का प्रयास कर रहे होते हैं. मानवों के स्वभाव
पृथक-पृथक हैं, ज्ञान का स्तर भी एक नहीं है, रूप-रंग में एक देश के लोग दूसरे देश
के लोगों के समान नहीं होते, किंतु उन्हें एक करती है भीतर की चेतना, वही उन्हें
निकट लाती है और वही उन्हें सशक्त करती है. व्यक्ति चेतना से जितना दूर निकल जाते
हैं, समाज में विघटन उतना ज्यादा होता है. जहाँ वर्गभेद भारी हो, लोगों को आपस में
जुड़ने के लिए कोई तो समानता चाहिए. समान रूचि वाले व्यक्ति जुड़ जाते हैं, क्योंकि
उनकी चेतना किसी एक दिशा में प्रवाहित होती है. जितना-जितना व्यक्ति चेतना को मुखर
होने का अवसर देगा, उसे भेद गिरते नजर आयेंगे. समाज में एकता बढ़ेगी और एकता में ही
शक्ति है. शक्ति की पूजा के पर्व पर इसे याद रखना होगा.
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