२७ सितम्बर २०१७
जीवन कितना अनमोल है इसका
ज्ञान उसी को होता है जो या तो अपनी अंतिम श्वासें गिन रहा हो अथवा जिसने मीरा की
तरह अपने भीतर उस अनमोल रतन को पा लिया हो. नवरात्रि के ये नौ दिन इसी का स्मरण
कराने आते हैं. शक्ति की पूजा का अर्थ है स्वयं के भीतर सुप्त शक्तियों को जगाना,
हर मानव के भीतर देव और दानव दोनों का वास है. हममें से अधिकतर तो दोनों से ही
अपरिचित रह जाते हैं. कुछ क्रोधी और अहंकारी स्वभाव वाले दानवों की भाषा बोलने
लगते हैं, उनके भीतर देवी का जागरण नहीं होता. साधना के द्वारा जब शक्ति जगती है
तो ही इन दानवों का विनाश होता है और एक नई चेतना से हमारा परिचय होता है. जीवन का
सही अर्थ तभी दृष्टिगत होता है और तब लगता है इतना अनमोल जीवन व्यर्थ ही जा रहा
था. उत्सवों का निहितार्थ कितना उद्देश्यपूर्ण है. उन्हें मात्र दिखावे या
मौज-मस्ती के लिए ही न मानकर, भक्ति और ज्ञान की गहराई में जाना होगा. यही पूजा के मर्म को सही अर्थों में ग्रहण करना होगा.
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