१ सितम्बर २०१७
जीवन में होने वाले अनुभवों में अधिकतर भीतर का भाव ही लौट-लौट कर आता है. जब किसी
हृदय में परम के प्रति प्रेम का जागरण होता है तो वह प्रेम अपनी सुवास स्वयं ही
बहा देता है, इसके लिए शब्द
जुटाने नहीं पड़ते. पका फल जैसे अपनी मिठास से
भर कर खुदबखुद टपक जाता है, भाव भरा अंतर भी इसी तरह
व्यक्त हो जाता है. जिसने उसे अनुभव किया है उसने ही गीत गाए हैं. वह खुद भी नहीं
जानता कितना बड़ा रहस्य अपने भीतर छुपाये है. जीवन स्वयं में एक रहस्य
है, इसका रचियता भी और उसके प्रति समर्पित अंतर भी. जीवन धारा अविरल गति से बही जा
रही है, किन्तु इसका आधार भी तो है. समयचक्र घूम रहा है, इसका केंद्र भी तो है.
जगत गतिशील है, किन्तु गति का अनुभव कराने वाला अचल तत्व भी तो है. जिसने उसे अपने
मन का मीत बना लिया वही दिव्य प्रेम को अनुभव सकता है.
इस मानव जीवन का समुचित उपयोग करना है और अपने लक्ष्य को पाना है ।
ReplyDeleteसही कह रही हैं आप, स्वागत व आभार शकुंतला जी !
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