Tuesday, September 19, 2017

मन के जो भी पार हुआ है

२० सितम्बर २०१७ 
भगवद गीता में कहा गया है, मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है और मन ही सबसे बड़ा शत्रु ! मन यदि धन, यश और पद की कामनाओं से युक्त है तो दुःख से उसे कोई नहीं बचा सकता. मन यदि अहंकार की तृप्ति करना चाहता है तो उसे कदम-कदम पर भय और दुःख का सामना करना पड़ेगा. जो मन स्वयं में ही तृप्त है, उसे न कोई भय है न ही पीड़ा. सात्विक भाव से युक्त मन सहज प्राप्त कर्मों को इसी भांति करता जाता है जैसे समय आने पर वृक्षों में फूल व फल लगते हैं. उसे न फल की इच्छा होती है न ही नाम की, वे तो उसी प्रकार प्राप्त होते हैं जैसे सुबह होने पर वातावरण में ताजगी और आह्लाद. जीवन के मर्म को जानना हो तो मन के पार जाना ही पड़ेगा, मन को हर दिन कुछ पलों के लिए विश्राम देने से वह मित्र बन जाता है. 

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