जुलाई २००३
भज गोविन्दम्, भज गोविन्दम्, भज गोविन्दम् मूढ़ मते..आदि गुरु शंकराचार्य ने कितना उचित कहा
है कि जीव मूढ़ मति रखता है और उसी के सहारे सुख पाना चाहता है. ज्ञान, कृपा और
ईश्वर का सानिध्य मिले बिना सुख नहीं मिल सकता और ये सब मति के शुद्ध होने पर ही
मिलते हैं. उस परमात्मा ने इतना कुछ देकर हमें मालामाल कर दिया है, उसके कृतज्ञ
होने के बजाय हमारी प्रार्थनाएँ मांगपत्र बन जाती हैं, जो कुछ उस प्रभु ने दिया है
उसे सजाने संवारने में हम दाता को ही भूल जाते हैं. पर सदगुरु की अपार कृपा है कि
वह हमें हर क्षण चेताते रहते हैं. निरंतर जगत की ओर ही नजर हो तो चिंता, तनाव,
विकारों से मन भर जाता है, ईश्वर की ओर नजर हो तो भीतर भक्ति, सेवा और आनंद का उदय
होता है. अहंकार का पेट कभी नहीं भरता, प्रेम का घट छलके बिना रहता नहीं है तभी तो
भक्त उस अखिल ब्रह्मांड के स्वामी को एक फूल और जरा सा जल अर्पित करके भी तृप्ति
का अनुभव कर लेते हैं.
बहुत सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteईश्वर की ओर नजर हो तो भीतर भक्ति, सेवा और आनंद का उदय होता है. अहंकार का पेट कभी नहीं भरता, प्रेम का घट छलके बिना रहता नहीं है तभी तो भक्त उस अखिल ब्रह्मांड के स्वामी को एक फूल और जरा सा जल अर्पित करके भी तृप्ति का अनुभव कर लेते हैं.
ReplyDeleteअनीता जी आपने पूरी बातें इतने सहज ढंग से कही .......
आपने सही कहा ,
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,,,,,,
वे क़त्ल होकर कर गये देश को आजाद,
अब कर्म आपका अपने देश को बचाइए!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
"जो कुछ उस प्रभु ने दिया है उसे सजाने संवारने में हम दाता को ही भूल जाते हैं."
ReplyDeleteबहुत सटीक कहा है,,आपने |
"मन के कोने से..."
सदा जी, रमाकांत जी, धीरेन्द्र जी व मंटू जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आलेख।
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