जुलाई २००३
प्रेय और श्रेय यह दोनों रास्ते जीवन में हर क्षण हमारे सम्मुख आते हैं, हमें हर पल
चुनाव करना होता है. जो श्रेष्ठ है यदि उसका चुनाव किया तो हम साधक हैं पर प्रेय
के पीछे गए तो अपने पद से नीचे गिर गए. ईश्वर हर क्षण हम पर नजर रखे है, वह हमारे चुनाव
में दखलंदाजी नहीं करता, वह द्रष्टा है पर जैसे ही हम श्रेष्ठता का मार्ग चुनते
हैं, वह हम पर एक स्नेह भरी मुस्कान छोड़ता है, उसका स्पर्श हम अपनी आत्मा में
महसूस करते हैं. जब भी हम अच्छाई के रास्ते पर चलते हैं आत्मा पुष्ट होती है और जब भी हम तुच्छता को
चुनते हैं आत्मा संकुचित होती है. उस पर एक धब्बा लग जाता है. हमें तो इस चादर को
ज्यों का त्यों प्रभु को सौंपना है. स्वच्छ, निर्मल और पवित्र और यह कितना सरल है,
यह तब सरल हो जाता है जब हम ईश्वर से प्रेम करते हैं, उसके और अपने बीच अहं आड़े नहीं
आने देते. उसने हमें अपने सा ही बनाया है. उसी की तरह हमें भी जगत में बाँटना ही
बाँटना है. हम में भी अनंत सम्भावनाएं छुपी हैं, साधना उन्हीं को जागृत करती है.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन उत्कृष्ट प्रस्तुति ,,,,अनीता जी बधाई,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: जिन्दगी,,,,
संभावनाओं को कितनी अच्छी तरह सामने रखा है
ReplyDeleteराजेश जी, धीरेन्द्र जी, सदा जी, व रश्मि जी आप सभी का अभिनंदन व आभार !
ReplyDeleteकोशिश यही करते हैं और आगे भी रहेगी।
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