जुलाई २००३
‘अजब राज है इस मुहब्बत के फसाने का, जिसको जितना आता है गाए चला जाता है’ ! वह
परमात्मा हर क्षण हमें अपनी ओर खींचता है, वह हमारे मन की सूक्ष्म से सूक्ष्म बात
जानता है. वह हमें हमारी ही कल्पना के अनुसार मिलता है, जिस रूप में हम उसका ध्यान
करें उसी रूप में वह नजर आता है. कोटि-कोटि ब्रह्मांडों का स्वामी हमारे प्रेम को
स्वीकारता है, उसकी महानता का कोई अंत नहीं. वह जीवन देता है, मन-बुद्धि देता है,
और स्वयं को भी दे देता है. वह एक ही अनेक होकर विद्यमान है. अद्भुत खेल रचाया है
उसने. पर वह कितना सरल है, एक नवजात शिशु सा निष्पाप और सरल. वह हमें भी वैसा ही देखना
चाहता है. वह हमसे अपने स्तर पर मिलना चाहता है. वह हमसे प्रेम करता है !
बहुत सटीक कहा आपने.....अद्भुत लीला है,ऊपर वाले की |
ReplyDelete"जितने तारे,उतने फोटो"
मंटू जी, आपका स्वागत व आभार !
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