जून २००३
हमारा मन अपने लक्ष्य से एक क्षण के लिये भी न भटके, जो लक्ष्य हमने तय किया है वह
सारे कार्यों से प्राप्त होता है. ध्यान के एक घंटे के लिये शेष तेईस घंटे उसके
विपरीत नहीं हों तभी ध्यान सधता है. मन, वचन, कार्य में एक रूपता होगी , तभी जीवन
में वह झलकेगा जिसकी हम कामना करते हैं. ईश्वर कण-कण में है उसे देखने की आँख हमें
भीतर विकसित करनी है. तब उसके मौन में भी ऐसा असर होगा, जो भीतर तक शीतलता भर दे.
उसका नाम भी एक बार प्रेम से पुकारो तो मन ठहर जाता है. जीवन तब बहुत सरल लगता है,
सहज रूप से हम जी पाते हैं, वरना तो मुखौटों से पीछा नहीं छूटता, पर उसके सामने
कोई मुखौटा नहीं चलता. हम अपने वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट देख पाते है, उसमें स्थित
हो पाते हैं और प्रेम को उसके शुद्धतम रूप में अनुभव कर पाते हैं.
ध्यान तभी सधता है. मन, वचन, कार्य में एक रूपता होगी ,
ReplyDeleteसत्य और सार्थक वचन
सत्य लिखा है ... जीवन में लक्ष्य जरूरी है ...
ReplyDeleteरमाकांत जी व दिगम्बर जी, स्वागत व आभार...
ReplyDeleteध्यान के एक घंटे के लिये शेष तेईस घंटे उसके विपरीत नहीं हों तभी ध्यान सधता है......बहुत सही बात है यह ।
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