Monday, August 13, 2012

भीतर एक अग्नि जलती है


जुलाई २००३ 
साधना के पथ पर हमें सदा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपनी उपलब्धियों पर अभिमान न हो, जो भी हमें मिला है वह कृपा का ही फल है. आज तक तो हम स्वयं पर निर्भर थे पर कहाँ कुछ कर पाए. हमारा सामर्थ्य उन्हीं का दिया हुआ है. कृपा से ही हमारा भ्रम टूट गया है, प्रकाश हो गया है. अब संसार कभी बांध नहीं पायेगा ऐसा दृढ़ विश्वास भी उन्हीं की कृपा से होता है. मन वैराग्य में दृढ़ होता है. मन में सात्विक यज्ञ चलता है, मन सदा शुद्ध चेतना में स्थित रहता है. जब हम दूसरों का चिंतन उनकी आलोचना के भाव से करते हैं, दूसरों के आचरण के बारे में स्वयं निर्णय लेने लगते हैं तो मन में तामसिक अग्नि पैदा होती है जो हमारे मन में क्रोध, मोह, मद आदि विकारों को जन्म देती है. सात्विक अग्नि के जलने से शांति, सरलता, सहजता आदि भाव उत्पन्न होते हैं साधक को तो हर क्षण इन्हीं की कमाई करनी है. 

4 comments:

  1. सत्य कहा है .. अभिमान विनाश का कारण है ...

    ReplyDelete
  2. सात्विक अग्नि के जलने से शांति, सरलता, सहजता आदि भाव उत्पन्न होते हैं

    परम मनोभाव

    ReplyDelete
  3. दिगम्बर जी, व रमाकांत जी आप दोनों का स्वागत व आभार !

    ReplyDelete
  4. जब हम दूसरों का चिंतन उनकी आलोचना के भाव से करते हैं, दूसरों के आचरण के बारे में स्वयं निर्णय लेने लगते हैं तो मन में तामसिक अग्नि पैदा होती है जो हमारे मन में क्रोध, मोह, मद आदि विकारों को जन्म देती है......gahan satya

    ReplyDelete