जुलाई २००३
साधना के पथ पर हमें सदा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपनी उपलब्धियों पर अभिमान
न हो, जो भी हमें मिला है वह कृपा का ही फल है. आज तक तो हम स्वयं पर निर्भर थे पर
कहाँ कुछ कर पाए. हमारा सामर्थ्य उन्हीं का दिया हुआ है. कृपा से ही हमारा भ्रम
टूट गया है, प्रकाश हो गया है. अब संसार कभी बांध नहीं पायेगा ऐसा दृढ़ विश्वास भी
उन्हीं की कृपा से होता है. मन वैराग्य में दृढ़ होता है. मन में सात्विक यज्ञ चलता
है, मन सदा शुद्ध चेतना में स्थित रहता है. जब हम दूसरों का चिंतन उनकी आलोचना के
भाव से करते हैं, दूसरों के आचरण के बारे में स्वयं निर्णय लेने लगते हैं तो मन
में तामसिक अग्नि पैदा होती है जो हमारे मन में क्रोध, मोह, मद आदि विकारों को
जन्म देती है. सात्विक अग्नि के जलने से शांति, सरलता, सहजता आदि भाव उत्पन्न होते
हैं साधक को तो हर क्षण इन्हीं की कमाई करनी है.
सत्य कहा है .. अभिमान विनाश का कारण है ...
ReplyDeleteसात्विक अग्नि के जलने से शांति, सरलता, सहजता आदि भाव उत्पन्न होते हैं
ReplyDeleteपरम मनोभाव
दिगम्बर जी, व रमाकांत जी आप दोनों का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteजब हम दूसरों का चिंतन उनकी आलोचना के भाव से करते हैं, दूसरों के आचरण के बारे में स्वयं निर्णय लेने लगते हैं तो मन में तामसिक अग्नि पैदा होती है जो हमारे मन में क्रोध, मोह, मद आदि विकारों को जन्म देती है......gahan satya
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