हम जैसा कर्म करते हैं
प्रकृति उसका तदनुसार फल देती है. उसके नियम अटल हैं. निष्काम कर्म भी करें तो भी फल तो मिलने ही वाला है. कामना होने
से हमारा सारा ध्यान कर्म की ओर न रहकर फल की ओर भी चला जाता है सो हमारी चेष्टा
पूर्ण नहीं होती सो फल भी अधूरा ही मिलता है. चिंतन, मनन ध्यान भी कर्म हैं और
निर्धरित कर्त्तव्यों का पालन भी. यदि पहली श्रेणी के कर्म हेतु के लिये किये गए
हों, और कर्त्तव्य, मात्र कर्त्तव्य हेतु तो पहले कर्म बांधने वाले होंगे. मन को
सात्विक बनाना भी यदि कुछ पाने की इच्छा से हुआ तो मुक्ति दूर ही रहेगी. कर्ता भाव
जब तक नहीं छूटता तब तक फल की इच्छा बनी ही रहेगी, यदि कर्म हमारे द्वारा हो रहे
हैं, हम नहीं कर रहे हैं तभी हम फल की आशा से बंधेंगे नहीं.
अति सुन्दर और ज्ञानमय आलेख।
ReplyDeleteइमरान, स्वागत व आभार !
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