जुलाई २००३
हम छोटे मन से सोचते
हैं, जो शरीर तक ही सीमित है अथवा बड़े मन से, जो विशाल है, जिसमें उस परमात्मा का
वास है. अनंत तो अनंत में ही समा सकता है, हमारी सोच ही हमें उसके निकट अथवा दूर लाती
है. हम यदि उन बातों के बारे में सोचते हैं जो सकारात्मक हैं, प्रशंसनीय हैं, जो
हमें उच्चता की ओर ले जाती हैं, जब हम प्रभु पर अटल विश्वास करते हैं तो वह
विश्वास ही हमारी रक्षा करता है. वैसे भी जब हम उसकी शरण में होते हैं तो हमें
अपनी रंचमात्र भी चिंता नहीं होती. बस हमें अपना सच्चा मन उसे अर्पित करना है, हमारा
भीतर-बाहर एक हो, तो हर क्षण उसके सान्निध्य में ही बीतेगा. वह हमारे इतने निकट है
कि उतने हम स्वयं भी नहीं हैं. बस एक झीना सा पर्दा हमारे बीच है जिसे हटाने में
भी वही हमारी मदद करता है, वही हमें बुद्धियोग प्रदान करता है, वह जो अव्यक्त है
पर स्वयं को हमारे भीतर व्यक्त करता है. जो हमारे होने का कारण है, जो हर क्षण
हमारी खबर रखता है, वह हमें अनंत आनंद का अनुभव कराता है, जगत अभी है, अभी नहीं,
पर वह सदा है.
वह हमारे इतने निकट है कि उतने हम स्वयं भी नहीं ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..सच..!
रितु जी, सचमुच वह ऐसा ही है !
Deleteपर बिना खोज के सिर्फ विश्वास ही हो तो बाधा बन सकता है ।
ReplyDeleteइमरान, सही कहा है आपने, अनुभव की एक बूंद कोरे विश्वास से बड़ी होती है,लेकिन अनुभव के लिये भी उसके निकट तो जाना होगा.
Deleteसही कहा आपने ।
Deleteअथक विश्वास प्रभु पर ही हमे सकरत्मक सोच देता है ...!!
ReplyDeleteसही है, आभार !
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