१४ अगस्त २०१७
परमात्मा हमारे द्वारा इस जगत में प्रतिपल कितना कुछ कर रहा है. श्वास जो भीतर अनवरत
चल रही है, उसी के कारण है. रक्त जो निरंतर गतिशील है, प्रेम जो शिशु की आँखों में
झलकता है. मन की गहराई में आगे ही आगे जाने की ललक भी तो किसी अनाम ग्रह से आती
है. जगत सदा मिलता हुआ प्रतीत होता है पर कभी मिलता नहीं, क्योंकि जो आज मिला है वह
प्रतिपल बदल रहा है. परमात्मा जो सदा दूर ही प्रतीत होता है, निकट से भी निकट रहता
चला आता है. जो जीवन उसके बिना हो ही नहीं सकता, उसे भी वह अपनी खबर नहीं होने
देता, उससे बड़ा रहस्य और क्या हो सकता है. बस इसी तथ्य को जो जान ले वह निर्भार हो
जाता है.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, श्री कृष्ण, गीता और व्हाट्सअप “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम जी !
Deleteईश्वर की माया पे भरोसा रखना निर्भार होना ही है ... सत्य कहा है ....
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
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