२८ अगस्त २०१७
हर आत्मा प्रेम से
उपजी है, प्रेम ने उसे सींचा है और प्रेम ही उसकी तलाश है. माता-पिता शिशु की देह
को जन्म देते हैं, आत्मा उसे अपना घर बनाती है. शिशु और परिवार के मध्य प्रेम का
आदान-प्रदान उस क्षण से पहले से ही होने लगता है जब बालक बोलना आरम्भ करता है. अभी
उसमें अहंकार का जन्म नहीं हुआ है, राग-द्वेष से वह मुक्त है, सहज ही प्रेम उसके
अस्तित्त्व से प्रवाहित होता है. बड़े होने के बाद जब प्रेम का स्रोत विचारों,
मान्यताओं, धारणाओं के पीछे दब जाता है, तब प्रेम जताने के लिये शब्दों की
आवश्यकता पडती है. जब स्वयं को ही स्वयं का प्रेम नहीं मिलता तो दूसरों से प्रेम
की मांग की जाती है. दुनिया तो लेन-देन पर चलती है इसलिए पहले प्रेम को दूसरे तक पहुँचाने
का आयोजन किया जाता है. यह सब सोचा-समझा हुआ नहीं होता, अनजाने में ही होता चला
जाता है. प्रेम पत्रों में कवियों और लेखकों के शब्दों का सहारा लिया जाता है.
दूसरे के पास भी तो प्रेम का स्रोत भीतर छिपा है, उसे भी तलाश है. जीवन तब एक
पहेली बन जाता है.
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