Thursday, August 3, 2017

अहिंसा परमो धर्मः

४ अगस्त २०१७ 
एक बार यदि साधक यह निर्णय ले लेता है कि उसे योग मार्ग पर आगे बढ़ना है, जीवन के परम लक्ष्य को पाना है अर्थात सर्वदुखों से सर्वकाल के लिए मुक्त होना है तो तत्क्षण उसे साधना आरम्भ कर देनी चाहिए. चाहे आधा घंटा ही की जाये, प्रतिदिन नियमित की गयी साधना फल देने लगती है. भूतकाल में किसी न किसी को दुःख दिया होगा, मन ही मन उससे क्षमा मांगकर भविष्य में किसी को कोई दुःख नहीं देना है अर्थात अहिंसा के पालन का व्रत भी ले लेना चाहिए. क्रोध हिंसा का ही एक रूप है. दोष दृष्टि भी हिंसा है. मन में क्षोभ का भाव जगे अथवा द्वेष का ये सभी हिंसा हैं. मन को शांत रखने के लिए अहिंसा का पालन अति आवश्यक है.


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