२४ अगस्त २०१७
जीवन निरंतर गतिशील
है. यदि गति ऊपर की ओर हो अर्थात उन्नतिशील हो तो सद्गति कहलाएगी और यदि नीचे की
ओर हो पतनशील हो तो दुर्गति कहलाएगी. कोई भी एक स्थान पर बने नहीं रह सकता. शिशु
बालक बन रहा है, यदि उसका लालन-पालन उचित नहीं हुआ तो वह निरंकुश बालक बन जायेगा. बालक
को यदि उचित वातावरण नहीं मिला तो वह दिशाहीन किशोर बन सकता है. किशोरावस्था में
मार्गदर्शन न मिलने के कारण कितने ही युवा बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं. इसके
विपरीत यदि शिशु को पर्याप्त स्नेह और संस्कार से सिंचित किया जाता है तो वह आदर्श
बालक व कुशाग्र किशोर बनकर समाज के लिए उदाहरण बन सकता है. भगवद गीता में कृष्ण
कहते हैं, कोई व्यक्ति किसी भी स्थिति में हो यदि उस क्षण वह तय कर ले कि उच्च
जीवन को अपनाना है, उसकी दिशा और दशा तत्क्षण बदलने लगती है. हर क्षण हमारे जीवन
की दिशा का चुनाव हमारे ही हाथ में होता है.
Bahut Gyanparak aur vyavhaarik
ReplyDeleteस्वागत व आभार विकेश जी !
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