१८ अगस्त २०१७
आकाश से जलधारा निरंतर बह रही है, मूसलाधार वर्षा हो रही है. धरती, पेड़-पौधे सब
भीग रहे हैं, पंछी पत्तों में छुप गये हैं. कहाँ छिपा था यह नीर जो बादल बनकर बरस
रहा है, क्या यह धरा से ही ऊपर नहीं उठा था. सागरों के ऊपर जब सूरज की किरणें छायी
होंगी और उसे तप्त करके ऊपर उठा ले गयी होंगी, प्रकृति उस नमकीन जल को मीठा बनाकर
फिर-फिर धरती को लौटा देती है. हमारा मन भी जब जगत के खारेपन को भीतर समा लेता है
और उसे मृदु बनाकर लौटा देता है तो परमात्मा से जुड़ जाता है, अथवा कहें परमात्मा
से जुड़कर ही ऐसा कर पाता है. हजार बूंदों के रूप में बारिश गीत गाती आ रही है. मन
भी उस परमात्मा से जुड़कर अनंत भाव लुटा सकता है. उसके दामन में सब कुछ अनंत है.
bahut sundar
ReplyDeleteस्वागत व आभार उपासना जी..
Deleteअति के बाद परिवर्तन है
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा है, स्वागत व आभार रश्मिप्रभा जी !
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