१३ जनवरी २०१८
सत्संग, सेवा, साधना और स्वाध्याय इन चार स्तम्भों पर जब जीवन की
इमारत खड़ी हो तो वह सुदृढ़ होने के साथ-साथ सहज सौन्दर्य से सुशोभित होती है. उत्सव
बार-बार इसी बात को याद दिलाने आते हैं. हर उत्सव का एक सामाजिक पक्ष होता है और
धार्मिक भी, यदि उसमें आध्यात्मिक पक्ष भी जोड़ दिया जाये तो उसमें चार चाँद लग
जाते हैं. मकर संक्रांति ऐसा ही एक उत्सव है. इस समय प्रकृति में आया परिवर्तन
हमें जीवन के इस अकाट्य सत्य की याद दिलाता है कि यहाँ सब कुछ बदल रहा है, भीषण
सर्दी के बाद वसंत का आगमन होने ही वाला है. छोटे-बड़े, धनी-निर्धन आदि सब भेदभाव
भुलाकर जब एक साथ लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं तो सामाजिक समरसता का विकास होता
है. तिल, अन्न आदि के दान द्वारा भी सेवा का महत कार्य इस समय किया जाता है. जीवन
की पूर्णता का अनुभव उत्सव के माहौल में ही हो सकता है. कृषकों द्वारा नई फसल को
प्रकृति की भेंट मानकर उसका कुछ अंश अग्नि को समर्पित करने की प्रथा हमें निर्लोभी
होना सिखाती है.
No comments:
Post a Comment