१० जनवरी २०१८
देह प्रतिक्षण बदल रही है, मन कहीं ठहरता ही नहीं, इन्हें
देखने वाला द्रष्टा मात्र साक्षी है. बचपन की देह अब नहीं रही, युवावस्था भी बीत
गयी और प्रौढ़ावस्था भी अधिक देर तक नहीं रहेगी. एक दिन देह भी गिर जाएगी, उस क्षण
भी एक तत्व अखंड बना रहेगा. उस एक तत्व को जो जान लेता है और उसमें टिकना सीख जाता
है, वह सुख-दुःख के पार चला जाता है. जगत में रहकर कार्य करते हुए, गाढ़ निद्रा में
अथवा स्वप्न देखते समय वह एक तत्व निरंतर देखता रहता है. हम संसार को देखते हैं पर
उस देखने वाले को नहीं देखते. नींद से जगकर जब हम कहते हैं, रात अच्छी नींद आयी तो
यह जवाब वहीं से आता है. हर साधना का लक्ष्य बुद्धि में उस एक तत्व को जानने की
लालसा जगाना ही है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हिन्दी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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