२४ जनवरी २०१८
जीवन एक ऊर्जा है, जो हजार-हजार
रूपों में स्वयं को व्यक्त कर रही है. मानव इस उर्जा को पहचान कर उसे दिशा दे सकता
है. जब तक हम स्वयं को नहीं जानते नियति के द्वारा संसार सागर में इधर-उधर बहाए
जाते हैं. हमारे कर्म पूर्वाग्रहों से संचालित होते हैं, जो पूर्व संस्कारों के
कारण बनते हैं. न चाहते हुए भी हम मनसा, वाचा, कर्मणा स्वयं दुःख पाते हैं और
अन्यों को दुःख देने के साधन बन जाते हैं. एक बार अपने भीतर इस ऊर्जा को अनुभव
करने के बाद भीतर स्वराज्य का जन्म होता है. यही असली मुक्ति है. विकारों,
संस्कारों, मान्यताओं और विश्वासों से मुक्त होते ही ऊर्जा खिलने लगती है और जीवन के
एक नये आयाम से परिचय होता है.
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