२५ जनवरी २०१८
कितना छोटा सा है मानव का हृदय और
उसमें वह अनंत समा जाता है जैसे कितना छोटा सा है मोबाइल फोन और उसमें सारा जहाँ समा
गया है. सूक्ष्म में स्थूल समाया है या स्थूल में सूक्ष्म, यह पहेली हल नहीं होती.
देह स्थूल है, मन सूक्ष्म, बुद्धि मन से भी सूक्ष्म और आत्मा बुद्धि से, परमात्मा
आत्मा से भी परे है, यानि उससे भी सूक्ष्म. वह अति सूक्ष्म सत्ता हर जड़-चेतन का
आधार है. उसमें सतत् वास करने से ही आत्मा समता को प्राप्त होती है, वरना मन तो
पीपल के पते की तरह डोलता ही रहता है. मन चाह जगाता है, फिर उसे पूर्ण करने के लिए
प्रयत्न करता है, सफल या असफल होने पर सुख-दुःख का अनुभव करता है, यश अथवा अपयश का
भागी भी बनता है. एक चक्र पूरा होने पर दूसरी चाह...मन कभी थकता नहीं. आत्मा सदा
तृप्त है. उसे विश्राम मिल गया है. वह उस पुष्प की तरह सुगंध फैलाती है जिसे न
खिलने की चाह है न मुरझाने का भय, जिसका स्वभाव ही है खिलना.
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