१७ जनवरी २०१८
‘मुख में नाम, हाथ में काम’, ऐसे वचन हम बड़ों के मुख से सुनते
आये हैं. कोई इसका अर्थ यह लगा सकता है कि कार्य करते समय भगवान का नाम लेते रहो, किन्तु
नाम जपना कभी-कभी औपचारिक भी हो जाता है और यांत्रिक भी. ऐसा भी हो सकता है कि कार्य
में लगे रहने पर मन उसी में सलंग्न हो जाये और नाम लेना भूल ही जाये. इसलिए इस
सुंदर वचन का भाव कुछ और होना चाहिए. हमारा मन शांत हो अर्थात भीतर कोई हलचल न हो
पर बाहर से हम निरंतर कार्य में लगे रहें. प्रमाद और आलस्य के वश होकर भक्ति के
नाम पर बैठे न रहें बल्कि अपना हृदय परमात्मा को समर्पित करके उसकी सृष्टि को
सुंदर बनाने के लिए अपना योगदान देते रहें.
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