३० जनवरी २०१८
संत कहते हैं, हम स्वयं ही अपनी गति हैं. हम जहाँ पहुँचना
चाहते हैं, पहुँचे ही हुए हैं, जो पाना चाहते हैं, हमें मिला ही हुआ है. हम ही
राही हैं और मंजिल भी हम ही हैं. जब पहुँचे ही हुए हैं तो राह है ही नहीं, चलना
नहीं है, कहीं जाना नहीं है. जहाँ हैं, वहाँ विश्राम करना है. ऐसा कोई पल खोजना है
जब देह के साथ चेतना भी पूर्ण विश्राम में हो, मन में न कोई हलचल हो न कोई संवेदना
ही. विचार थम जाएँ और चेतना अपने आप में ठहर जाये, ऐसा एक भी पल हमें अपनी मंजिल
का पता बता देता है. उसकी झलक दे देता है, फिर जगत में सभी कार्य करते हुए भी उस
घर की याद बनी रहती है.
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