Thursday, August 2, 2012

विचार के पार ही अमृत है


जून २००३ 
विचार ही हमारा संसार है, स्वप्न में भी यही विचार प्रकट होते हैं. स्वप्न भी हमारा खुद का बनाया  संसार है. धर्म विचारों से मुक्ति का नाम है. हमारे मन में यदि पूर्ववत् विचार चलते रहे तो हम धार्मिक कहाँ हुए. विचार जब हमारे चाहने से उठे और चाहने से शांत हो जाये तभी हम साधना के पथ पर आगे बढ़ते हैं, विचार से मुक्ति, स्वप्न से मुक्ति और कल्पनाओं से मुक्ति ही साधना है. जिस प्रकार गंध हर जगह है पर सूंघने का काम नासिका ही करती है उसी प्रकार ईश्वर सर्वत्र है पर उसे अनुभव करने का सामर्थ्य जागृत होने के बाद ही होता है. मन जब खाली हो, संकल्प-विकल्प न चलते हों, चित्त निर्मल हो तो वह अमृत रस भीतर प्रकट होता है. इस जगत में सुख-दुःख के झूले में बहुत झूल लिये, माँगने की कला को पीछे छोड़कर नित्य उस परम आनंद में स्थित रहने की कला हमें सीखनी है.   


6 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. धर्म विचारों से मुक्ति का नाम है.
    धर्म की शानदार परिभाषा

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  3. विचार से मुक्ति, स्वप्न से मुक्ति और कल्पनाओं से मुक्ति ही साधना है.

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  4. बहुत सुन्दर ..

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  5. रितु जी, धीरेन्द्र जी, रमाकांत जी, व सदा जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. सटीक और सुन्दर आलेख .....विचार से पार जाना ही है ।

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