Friday, September 21, 2012

जीवन एक साधना है


‘कुछ कुछ’ से ‘कुछ नहीं’ किया फिर ‘सब कुछ’ बना दिया...साधना का यही करिश्मा है. संतों के जीवन को देखकर यही तो लगता है. धूल का एक कण ही एक दिन हिमालय बन सकता है, पानी का एक कतरा सागर बन सकता है. सतत साधना सीमित को असीमित कर सकती है. सत्य भरे हुए बादल की तरह है जो मन रूपी धरती की प्यास बुझाता है. वह शमा है, जो निरंतर जल रही है ताकि अंधकार से साधक निकल आए, अज्ञान का अंधकार जो हमारे दिलों को छोटा कर देता है, हमारे सच्चे स्वरूप को हमसे जुदा कर देता है. संत किसी भी पल आयी हुई मृत्यु का बाहें फैलाकर स्वागत भी कर सकता है, उनके हाथ इतने बड़े हो जाते हैं कि सारा ब्रह्मांड उनमें समा सकता है. 

5 comments:

  1. आपको पढ़ना बहुत रुचिकर लगता है ...!!मन बहुत शांत और सकारात्मक हो जाता है ...!!बहुत सार्थक प्रयास है आपका ...!!बहुत बहुत शुभकामनायें ..!!

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    1. अनुपमजी, आपका स्वागत है, आभार..

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  2. सकरात्मक दिशा की और प्रेरणामयी पोस्ट।

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    1. इमरान, स्वागत व आभार..

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  3. आपकी डायरी का हर पन्ना सार्थक सन्देश देता हुआ प्रेरणास्पद है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार जी.

    मेरा ब्लॉग की नई पोस्ट आपके ब्लॉग पर
    एक सप्ताह से अधिक की हो चुकी है.
    मन करता है आप जल्दी आयें.

    इन्तजार है आपका अनीता जी.

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