अगस्त २००३
ईश्वर का एक नाम काल भी है, काल अर्थात मृत्यु जो सभी के लिए तय है, यदि हम मृत्यु
का स्मरण सदा हृदय में बनाये रखें तो कभी अभिमान के शिकार नहीं हो सकते. संसार में
वैसे ही यदि कोई रहे जैसे फूल रहता है, जब तक डाली पर है, जगत को देता है फिर चुपचाप झर जाता है, हम भी जब तक यहाँ हैं,
जगत को कुछ न कुछ दें फिर जब जाने का समय आए तो शांत भाव से चले जाएँ, क्योकि जाना
भी तो वहीं है जहां से हम आए हैं. जीवन मौन से ही शुरू होता है और मौन में ही
समाप्त होता है, मौन इसलिए अतिशय प्रिय है, सन्नाटे और शांति में सुकून मिलता है,
जैसे कोई मौन में भी बात कर रहा हो. बाहर का शोर भीतर हलचल मचा देता है, जैसे भीतर
का शोर बाहर की अशांति का कारण भी होता है. भीतर का मौन बाहर की व्यवस्था का कारण
भी होता है. हमें शांति का अनुभव करना हो तो भीतर के मौन में उतरना ही होगा, वहीं
से संगीत फूटता है और वहीं से शब्दों का जन्म होता है, बाहर जो विविधता प्रतीत
होती है वह ऊपर-ऊपर ही है, गहरे में सब एक है, वह एक ही संतों का आराध्य है, वह एक
परब्रह्म जो इस समस्त मायाजाल के पीछे है. वह अटूट मौन में ही है, वहाँ कोई चतुराई
काम नहीं आती.
बिल्कुल सही कहा आपने ... आभार
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteगहरे में सब एक है.
इसीलिए कबीर जी भी कहते हैं
गहरे पानी पैंठ
आभार,अनीता जी.
आपने मेरे ब्लॉग पर कुछ कहा नही जी.
लगता है असीम मौन के आनन्द में मग्न हैं आप.
सही कहा है आपने....भीतर शोर हो तो बाहर भी अशांति फैलाता है ।
ReplyDeleteहमें शांति का अनुभव करना हो तो भीतर के मौन में उतरना ही होगा, वहीं से संगीत फूटता है और वहीं से शब्दों का जन्म होता है, बाहर जो विविधता प्रतीत होती है
ReplyDeleteबिना भीतर उतरे कुछ हासिल होने वाला नहीं।
हमें शांति का अनुभव करना हो तो भीतर के मौन में उतरना ही होगा, वहीं से संगीत फूटता है और वहीं से शब्दों का जन्म होता है,
ReplyDeleteBEAUTIFUL LINES TO REMEMBER.
बहुत अच्छी गहनाभिव्यक्ति मन के भीतर के मौन का सुख जिसने भोग लिया वही इस जीवन में सुखी है
ReplyDeleteसदा, राकेश जी, मनोज जी, रमाकांत जी, राजेश जी, इमरान आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार..
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