हमारा जीवन जो बाहर-बाहर है, क्षणभंगुर है, वहाँ सभी कुछ बदल रहा है, जो सीखा हुआ
है, पर जो भीतर है, जो हम अपने साथ लेकर ही आये हैं, वह शाश्वत है. जब हम उस
शाश्वत की ओर नजर डालते हैं तभी जीवन में फूल खिलते हैं. देह, मन, बुद्धि और
इन्द्रियों से परे एक चेतन सत्ता..जो निर्दोष है, शुद्ध है पर हम उसे देखते ही
नहीं, एक शिशु कोरा पैदा होता है, जगत उसे सिखाता है, लेकिन इस सीखे हुए ज्ञान के कारण
उस ओर कभी उसकी नजर नहीं जाती, जो वह लेकर ही आया था, प्रेम, शांति और आनंद शिशु
के पास होते ही हैं, पर वयस्क होते-होते वे कहीं खो जाते हैं, वे छिप जाते हैं. ‘ध्यान’
से वे उभर आते हैं, तब हमारी सारी चेष्टाएं निष्काम होती हैं, हम अलिप्त रहकर जीना
सीख जाते हैं. हम अपने स्वभाव को प्राप्त हो जाते हैं.
sundar sarthak bat ..!!
ReplyDeleteek ek shabd sahi ...!!
बहुत सही ..
ReplyDeleteदेह, मन, बुद्धि और इन्द्रियों से परे एक चेतन सत्ता..जो निर्दोष है,
ReplyDeleteSATY KATHAN SHASHWAT SATY
अनुपमा जी, सदा जी, व रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसुन्दर व सटीक।
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