अगस्त २००३
जीवन के रंग विचित्र हैं. हम सभी एक विशाल अथवा कहें अनंत सृष्टि के भाग हैं, आपस
में सभी जुड़े हैं, उस परमात्म तत्व के द्वारा. वह तत्व भीतर-बाहर हर जगह है, एक
सूक्ष्म तन्तु के रूप में उसने सभी को बांध रखा है. कृष्ण ने गीता में कहा ही है
कि यह सारा जगत मुझ धागे में मोतियों की भांति पिरोया हुआ है. यहाँ कोई भी एक से
जुदा नहीं. एक ही आत्मा सभी के भीतर है, सभी को सुख-दुःख समान रूप से व्यापते हैं.
पर जो इस संसार से परे हो जाता है, वह इस जगत को परमात्मा की नाईं द्रष्टा भाव से
देखता है. जो कुछ भी इस जगत में जहाँ कहीं भी, जिस किसी के साथ भी हो चुका है, हो
रहा है गहराई से सोचें तो खेल ही लगता है, नाटक की तरह हम अपने पात्र निभाएं तो
खेल मजेदार है और यदि उसे सच्चा मानने लगें तो बुद्धि चकरा जायेगी, पर इसका पार न
पा सकेंगे. यहाँ एक को खुश करो तो दूसरे को नाराज करना ही पड़ता है. सभी को साथ
लेकर चलना हो तो अंतर में शुद्ध प्रेम होना चाहिये, ऐसा विशाल हृदय जो कोई भेद
नहीं मानता, मानवेतर सृष्टि से भी उतना ही प्रेम रखता है. जो वस्तुओं का गुलाम
नहीं, जो जीवनमुक्त है.
सच कहा है आपने अनीता जी जीवन के रंग सचमुच बिचित्र होते हैं.
ReplyDeletebahut badhiya baat ..!!
ReplyDeleteabhar Anita ji .
एक ही आत्मा सभी के भीतर है, सभी को सुख-दुःख समान रूप से व्यापते हैं.
ReplyDeleteयही जीवन का सार है
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, अरुण जी, अनुपमा जी, रमाकांत जी व सदा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteएक एक अक्षर सत्य है ।
ReplyDeleteअपने भीतर सत्यता को समेटता हुआ एक अनुपम लेख !!
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