जिसने परम लक्ष्य तय कर लिया है, वह हर परिस्थिति में समभाव बनाये रखेगा, हर स्थिति
को अपने लक्ष्य की ओर ले जाने वाला बनाएगा. लक्ष्य का स्मरण कर्त्तव्य से च्युत
नहीं होने देता. इस जगत में हम अकेले ही आए हैं, और अकेले ही जाना है यह बीच का जो
वक्त है, वही हमें मिलजुल कर बिताना है पर याद इतना ही रखना है की यह बीच का समय
हमारी सारी ऊर्जा को ही न ले ले, हमें
अंतर में ध्यान के अमृत को पीना है. शरीर में होने वाली संवेदनायें किसी न किसी
भावना की द्योतक हैं, यदि संवेदना को देखें और देखते-देखते वह खत्म हो जाये तो वह
भावना भी नहीं रहती. ध्यान में तभी हमारी सभी नकारात्मक भावनाएं खत्म होने लगती
हैं, और हम साफ-स्वच्छ बाहर निकल आते हैं. ध्यान एक तरह से स्नान ही हुआ न, भीतरी
स्नान. फिर जब मन विधायक हो जाता है तब प्रज्ञा प्रकट होती है. अभी रास्ता लम्बा
है पर रास्ता भी कितना मोहक है, अद्भुत है, परमात्मा का संग इसे और भी मोहक और
आनन्दप्रद बना देता है.
वाह गहरे सुन्दर भाव ..
ReplyDeleteध्यान में शक्ति है ..
सच है ..
बहुत सुन्दर भाव,,,
ReplyDeleteसादर
अनु
रितु जी व अनु जी आप दोनों का स्वागत व आभार...
ReplyDeleteसच कह अनीता जी....मंजिल का तो अभी दूर तक पता नहीं....ये रास्ता ही इतना मोहक है ।
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