Wednesday, September 19, 2012

रोम रोम जब उसे पुकारे


अगस्त २००३ 
साधक के जीवन में अनुशासन की अत्यधिक आवश्यकता है, समय की पाबंदी रहे, उसका सदुपयोग हो, उसके महत्व को जानते हुए हम कर्म करें. प्रातः उठकर यदि सभी के लिए मंगल कामना हो तो दिन भर उसकी सुगन्धि मिलती है. भाव और विचार ही वाणी व कर्म को जन्म देते हैं. वह पुण्यों की खेती करे ऐसे ही बीज बोये जिसके फल सुखकारी हों. हर अशुभ कर्म, वाणी अथवा सोच दुःख का वह  बीज होता है जो हम स्वयं ही बोते हैं और भविष्य में उसका फल हमें ही काटना होता है. आज हमारे जीवन में जो भी दुखद घटता है वह हमारे ही कर्मों का प्रतिफलन है. ऐसा मन जिसे सत्य की आकांक्षा हो उसमें कोई विकार आए भी क्यों, परम सत्य शुद्धता चाहता है, खोट, कपट, मिलावट, दम्भ, छल अथवा झूठ उसे नहीं भाते, वह हमारे मन को निर्मल देखता है तभी अपने कदम वहाँ रखता है. हमारे हृदय में उसके लिए पुकार, प्यास, चाह कितनी गहरी है, इसका पता उसे चल जाता है, जिस क्षण हम विकारग्रस्त होते हैं अथवा तो निर्मल होते हैं तत्क्षण हमें अनुभव होता है. उसकी कृपा तभी होती है जब हमारे रोम-रोम से उसकी चाह उठती है. तभी वह जिस भी परिस्थिति में रखे, उसे स्वीकारते हुए समता की भावना बनाये हुए और अंतर में उसके प्रेम को अनुभव करते हुए साधक इस जगत में व्यवहार करता है.

1 comment:

  1. हर अशुभ कर्म, वाणी अथवा सोच दुःख का वह बीज होता है जो हम स्वयं ही बोते हैं और भविष्य में उसका फल हमें ही काटना होता है.

    शाश्वत सत्य

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