अगस्त २००३
कृष्ण की वाणी अमोघ है, अमूल्य है, वह हमें ज्ञान का उपहार देते हैं, जिसे पाकर हम
कृतकृत्य हो जाते हैं, कितने सरल शब्दों में कितनी उच्च बात वह कह जाते हैं, उनका
प्रेम अनंत है, वह प्रेमस्वरूप हैं, तभी वह संसार के हर प्राणी से प्रेम करते हैं,
हित चाहते हैं सभी का और जो भी उनकी शरण में जाता है, उसके कुशल क्षेम की रक्षा का
भार वह स्वयं ले लेते हैं. वह जानते हैं हमारे लिये क्या उचित है क्या नहीं, वह
हमारी भौतिक और आध्यात्मिक दोनों मांगों को स्वीकारते हैं, वह हमें पूरा का पूरा
अपनाते हैं और स्वयं को भी पूरा का पूरा दे डालते हैं, वह कुछ शेष नहीं रखते, वह
दूरी नहीं चाहते. वह प्रेम के बदले मात्र प्रेम ही चाहते हैं. वह सफलता असफलता को
संसार के नजरिये से नहीं देखते. वह हमारे मन को पढ़ना जानते हैं और उसी के अनुरूप
ज्ञान देते हैं. कृष्ण से हमारी निकटता भावना के स्तर पर है और आत्मिक स्तर पर भी,
बल्कि वह स्वयं ही हमारी आत्मा है, तभी वह इतना अपना लगता है. उसकी आँखें देखना
चाहें तो मीरा की आँखें देखनी होंगी, वह और हमारा अपना आप एक ही है, इस एकता की अनुभूति
में अनोखा आनंद है, शांति है और प्रेम है. यहाँ कोई भेद नहीं, यह सहना है उस अथाह
प्रेम को जो भक्त के भीतर उमड़ता है तो कचोट कर रख देता है.
कृष्ण दूर नहीं , अन्दर सारथी बने युद्धरत हैं
ReplyDeleteकृष्ण की वाणी अमोघ है,अमूल्य है,वह हमें ज्ञान का उपहार देते हैं,
ReplyDeleteसत्य वचन,,,,,ज्ञान का संदेश देती अनुकरणीय पोस्ट,,,,,
कृष्ण की वाणी अमोघ है, अमूल्य है, वह हमें ज्ञान का उपहार देते हैं,
कृष्ण के प्रेम में मतवाली गोपी बनना होगा तभी उसकी रस फुहार बरसेगी।
ReplyDeleteएकता की अनुभूति में अनोखा आनंद है, शांति है और प्रेम है. यहाँ कोई भेद नहीं, यह सहना है उस अथाह प्रेम को जो भक्त के भीतर उमड़ता है तो कचोट कर रख देता है.
ReplyDeleteजीवन का सत्य
कृ्ष्ण अब युद्ध नहीं करते
ReplyDeleteप्रेम करते हैं
युद्ध करने के लिये
अर्जुन से कहते हैं !
रश्मि जी, इमरान, रमाकांत जी, सुशील जी, व धीरेन्द्र जी अप सभी का स्वागत व आभार..
ReplyDeleteये अनुभूति ही तो जीवन मे संचार भरती है।
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