अगस्त २००३
‘’हम उस देश के वासी हैं, जहाँ शोक नहीं, जहाँ आह नहीं’’, जहाँ हम जमीन से ऊपर उठ
जाते हैं. जहाँ हमारा मन, मन नहीं रहता, वह शुद्ध चेतना से संयुक्त हो जाता है. जहाँ
कोई रूप नहीं, आकार नहीं, जिसका कोई नाम नहीं, जहाँ समय का बोध नहीं रहता, जहाँ
स्थान का भी कोई बोध नहीं रहता. जब मन बिना किसी कारण के पूर्ण आनंदित रहता है,
सभी के भीतर उस ब्रह्म के दर्शन होते हैं, सभी के साथ आत्मीय सम्बन्ध प्रतीत होता
है,एक अद्भुत शांति का आभास होता है तब उसी लोक की झलक मन को मिली होती है.
शास्त्रों की बातें तभी समझ में आती हैं, वरना शास्त्र अपना मूल अर्थ छिपाए ही
रखते थे. उन्हें पढ़कर बुद्धि से जानना और है, जीवन में उतारना और है. हम ईश्वर की
ओर एक कदम बढाते हैं तो वे हजार कदम हमारी ओर बढाते हैं. वह अनंत है सो उसका हर
काम अनंत है.
bahut sundar ...
ReplyDeleteAbhar Anita ji ...
जीवन में उतारना और है. हम ईश्वर की ओर एक कदम बढाते हैं तो वे हजार कदम हमारी ओर बढाते हैं. वह अनंत है सो उसका हर काम अनंत है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
शास्त्रों की बातें तभी समझ में आती हैं, वरना शास्त्र अपना मूल अर्थ छिपाए ही रखते थे. उन्हें पढ़कर बुद्धि से जानना और है, जीवन में उतारना और है......बिलकुल सहमत हूँ इससे।
ReplyDeleteअनुपमा जी, रमाकांत जी, व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteअति सुन्दर !!
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