मन की कामनाओं की
पूर्ति के लिए हम परिस्थितियों के गुलाम बन जाते हैं, सब कुछ होते हुए भी अभाव का
अनुभव करते हैं, किसी के पास भोजन हो, वस्त्र हों, और घर हो फिर उसे क्या चाहिए, लेकिन
मन इच्छाएं खड़ी किये जाता है और उसमें जो बाधा डालता है उस पर क्रोध जगाता है, सूक्ष्म
अहंकार भी उसमें सम्मिलित होता है. हमें खुद पर इतना तो वश होना ही चाहिए कि
वस्तुओं को उसके सही उपयोग की दृष्टि से ही आंकें. जिसका मन कभी खाली होता ही नहीं
तो तन रूपी घर में रहने वाली आत्मा को कहाँ स्थान मिलेगा, वह सिकुड़ कर रहने के लिए
विवश हो जाती है. जैसे ही हम अपनी सूक्ष्मतम भावनाओं के प्रति सजग हो जाते हैं,
अनावश्यक अपने आप झर जाता है. मन खाली होने लगता है. तब हम ईश्वर की उपस्थिति को
महसूस करने लगते हैं.उसकी याद ही मन को व्यर्थ की कामना में उलझने से बचाती है.
ज्ञान भी तभी भीतर टिकता है. अखंड शांति का भाव जगता है.
'मन ' का सुन्दर चित्रण किया है आपने ..
ReplyDeleteram ram bhai
ReplyDeleteमंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
रितु जी, व वीरू भाई, आपका स्वागत व आभार...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व ज्ञानमय पोस्ट।
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