अगस्त २००३
सुख-दुःख से परे, मान-अपमान से ऊपर, इच्छा-अनिच्छा के द्वंद्व से मुक्त मन कितना सुंदर
है. सत्यं-शिवं-सुन्दरं का जब जीवन में प्रवेश हो संभवतः तभी वास्तविक जीवन शुरू
होता है. सत्य ही शिव है, और जो कल्याणकारी है, वही सुंदर है, यह जगत हमारे मन का
प्रतिबिम्ब ही दिखाता है. जब मन शांत हो, सौम्यता को धारण कर चका हो, जगत में रची
गयी सैकड़ों लीलाएं चाहे वे सुखद हो अथवा दुखद, अब एक सी प्रतीत होती हैं. घड़ी-घड़ी
मन भीतर आ जाता है, उसी केन्द्र की ओर जो उसका मूल है, बाहर के कार्यों को करने के
लए उसे सप्रयास बाहर लाना पड़ता है. इसे ही अमनी भाव कहते हैं. मौन से कैसी प्रीति
हो जाती है. वाणी के मौन के साथ-साथ भीतर का मौन.. क्योंकि अब कोई चाह शेष नहीं
रहती, जब इस जगत से विशेष कुछ मिलने वाला नहीं है जो पहले से ही हमारे पास नहीं है
तो बाहर क्यों जाएँ. भीतर कोई मिल गया है जिसे जानकर ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ
पाना शेष नहीं रह गया है. सब कुछ इतना सहज हो जाता है मानों जन्मो-जन्मों से इसी
पथ के राही हों. तब जीवन एक खेल लगता है.
ऐसी गहन शांति ....अद्भुत ।
ReplyDeleteसुख-दुःख से परे, मान-अपमान से ऊपर, इच्छा-अनिच्छा के द्वंद्व से मुक्त मन कितना सुंदर है. सत्यं-शिवं-सुन्दरं का जब जीवन में प्रवेश हो संभवतः तभी वास्तविक जीवन शुरू होता है.
ReplyDeleteपरम सत्य
इमरान व रमाकांत जी, स्वागत व आभार..इस शांति का अनुभव करने के लिए...
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