Friday, November 9, 2012

उत्तिष्ठतः जाग्रतः प्राप्त वरान्निबोधताः


अक्तूबर २००३ 
कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर में काली मंदिर में काली की भव्य मूर्ति है. मंदिर का प्रांगण भी विशाल है, सामने ही नदी भी है. परमहंस रामकृष्ण इसी मंदिर में माँ काली से वार्तालाप करते थे. बेलूर मठ में उनकी मूर्ति ऐसी जीवंत है, लगता है वह वही हैं, श्रद्दालुओंको आज भी उनकी उपस्थिति का अहसास होता है. स्वामी विवेकानंद की समाधि भी अनुपम है, उनके कमरे को फूलों से सजाया गया है. पूरे आश्रम में एक अनोखी शांति फैली हुई है. माँ शारदा के कई सुंदर चित्र वहाँ हैं. जीता-जागता ईश्वर इस आश्रम में निवास करता था, उसकी उपस्थिति न जाने कितने सौ वर्षों तक हमें प्रेरित करती रहेंगे. ईश्वर इस सृष्टि के कण-कण में है, वही जीवन है, वही मृत्यु भी है. वही द्वंद्वों को बनाता है पर स्वयं उससे पर है, हमने वह अपनी ओर बुलाता है, वह जैसे कोई खेल खेल रहा है. यह जगत जैसे काली माँ की क्रीड़ास्थली है, हम यदि इस खेल को जीतना चाहते हैं तो उसके पास लौटना होगा, और उसका रास्ता सांप-सीढ़ी के खेल की तरह कई उतार-चढ़ाव से भरा है, जब हमें प्रतीत होता है कि मंजिल सामने है तो कोई सांप हमें डस लेता है और हम नीचे उतार दिए जाते हैं, पर भीतर से कोई कहता है उठो, जागो और मुझे प्राप्त करो.

4 comments:

  1. उठो, जागो और मुझे प्राप्त करो.

    सत्यवचन

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  2. रश्मि जी व रमाकांत जी, आप दोनों का स्वागत व आभार !

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  3. सही कहा बहुत उतर चढ़ाव हैं ।

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